विश्व ब्रह्मर्षि ब्राह्मण महासभा के संस्थापक अध्यक्ष ब्रह्मर्षि विभूति बीके शर्मा हनुमान ने कहा कि ‘संसार एक विडंबना है। विडंबनाओं के कारण मनुष्य असंतुष्ट, निराश, अवसादों के चक्रव्यूह में अनुकूलता और प्रतिकूलता के मकड़जाल में जन्म-जन्मांतर से फंसा हुआ है। इन झंझटों से मुक्ति चाहते हो तो प्रत्येक स्थिति में शांत रहकर परिस्थिति को समझो और चुप्पी साधो । हर बात में तर्क और त्रुटियां देखोगे तो विवाद बढ़ेगा। विवाद का समाधान संवाद है। आवश्यक नहीं कि सदा बोलते ही रहा जाए। अग्नि समान क्रोध और घृणा से मुक्त होने का एकमात्र उपाय मौन धारण है।’
वस्तुतः, मौन अवस्था कठोर साधना है। यह साधना बहुत फलदायी भी होती है। कई परिस्थितियों में मौन हमें अप्रिय और असहज स्थितियों से बचा ‘लेता है। जैसे जब किसी के साथ हमारा टकराव होता है तो सामने वाले के कटु वचनों के प्रत्युत्तर में हम भी और कड़े जवाब देने के लिए तत्पर होते हैं। इससे स्थितियां और बिगड़ती हैं। कई बार 1. ऐसे शब्द निकल जाते हैं कि बाद में मन के भीतर वेदना होती है कि ऐसा कहा ही क्यों? संबंधों में भी कटुता बढ़ जाती है। टकराव की ऐसी स्थिति में मौन बहुत फलदायी होता है। बहुधा मौन भी एक मुखर अभिव्यक्ति सिद्ध होता है।