Eros Times: राष्ट्रीय प्रजापति महासंघ के तत्वाधान पिछड़े वर्ग की जातियों एवं प्रजापति समाज की सहयोगी संस्थाओं के द्वारा पिछड़े वर्ग की प्रमुख मांगों को लेकर दिल्ली जंतर मंतर पर धरना प्रदर्शन, जनसभा का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुरेंद्र कुमार प्रजापति राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय प्रजापति महासंघ, संचालन राजवीर सिंह प्रजापति राष्ट्रीय मुख्य महासचिव राष्ट्रीय प्रजापति महासंघ ने किया।कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पूर्व न्यायाधीश वी. ईशवरैया पूर्व अध्यक्ष राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग भारत सरकार ने ऑनलाइन अपने विचार रखते हुए पिछड़े वर्ग के लोगों को संबोधित किया।विशिष्ट अतिथि राजकुमार सैनी पूर्व सांसद, विशंभर निषाद पूर्व सांसद, अनिल साहनी पूर्व सांसद, रमेश प्रजापति पूर्व राज्य मंत्री उपाध्यक्ष एससी एसटी आयोग उत्तर प्रदेश, हंसराज जांगड़ा, डॉक्टर वरदानी प्रजापति, प्रदीप प्रजापति वह अन्य अतिथि हंसराज भौरिया, शिवनाथ, नंदराम प्रजापति जी एडवोकेट रजनीकांत, करण सिंह प्रजापति, सत्य प्रकाश आर्य, मंगल सेन प्रजापति श्रीकांत पाल संस्थापक भारतीय स्वराज संघ, अजीत स्वामी, हरद्वारी लाल आर्य नंद, अरविंद सिंह सिद्ध फरीदाबाद, सुरेंद्र बदलियासेन, यशपाल पांचाल, राधे मोहन राठौर, आरसी लिम्बा, सुग्रीव पंडित, सुरेंद्र पंडित, लक्ष्मी चंद्र डकोरिया, विजेंद्र गोला, कमल सिंह, कांति प्रसाद, लिज्जेराम प्रजापति, चंद्र प्रकाश प्रजापति, सुरेश प्रजापति हरियाणा, नरेश पटेल, राधेश्याम मालचा, दोम्मता वकेतशे प्रजापति, राम अजोर प्रजापति, प्रमोद कुमार प्रजापति, नंदकिशोर नगर कंडेरा डॉ महेश चंद्र प्रजापति, रामपाल प्रजापति, राजेंद्र आर्य, रामफल जांगड़ा, पूरन बघेल, श्रीराम सेवक, भगवान दास लोधी, देवेंद्र प्रजापति, सुबह सिंह, जयप्रकाश प्रजापति इंजीनियर मलखान सिंह, विजेंद्र प्रजापति, रामकृष्ण प्रजापति, फकीरचंद प्रजापति, दयाचंद प्रजापति महावीर वर्मा सुनार हरियाणा दिनेश प्रजापति, डॉक्टर सुरेश प्रजापति, अमर सिंह प्रजापति, पूरन प्रजापति, मुकेश प्रजापति, जय भगवान प्रजापति, दरवेश प्रजापति, मालती देवी प्रजापति, हुकुमचंद प्रजापति, मुकेश प्रजापति डॉक्टर लक्ष्मण प्रजापति, जयपाल प्रजापति, रमेश प्रजापति आदि लगभग 60 संगठनों के प्रमुख पदाधिकारी उपस्थित रहे।
पिछड़े वर्ग की सहयोगी संस्थाएं एवं राष्ट्रीय प्रजापति महासंघ के विभिन्न प्रदेशों से तेलंगाना तमिलनाडु झारखंड बिहार महाराष्ट्र मध्य प्रदेश राजस्थान उत्तर प्रदेश हरियाणा दिल्ली उत्तराखंड हिमाचल जम्मू एंड कश्मीर पंजाब उड़ीसा एवं एनसीआर आदि प्रदेश एवं जिलों से प्रतिनिधि के रूप में हजारों की संख्या में उपस्थित होकर आपनी मांगों पर अपने-अपने विचार रखें।
देश में जाति आधारित जनगणना कराई जाए ताकि स्पष्ट हो सके कि देश में किस जाति वर्ग की कितनी जनसंख्या है उसी आधार पर जिसकी जितनी संख्या उसको उतना आरक्षण दिया जाए।
अति पिछड़ी जातियों को अलग से व्यवस्था देते हुए पिछड़ी जाति में वर्गीकरण के माध्यम से उचित लाभ प्रदान किया जाए। ताकि पिछड़ी जाति में मिलने वाले आरक्षण का लाभ सभी जातियों को समान रूप से मिल सके अब तक इस आरक्षण का लाभ मात्र कुछ जातियाँ ही ले रही हैं इसलिए वर्गीकरण करते हुए लाभ देना न्याय संगत में होगा।
पिछड़ी जातियों का तत्काल प्रभाव से क्रीमी लेयर हटा दिया जाना चाहिए। चूँकि देश की प्रशासनिक सेवाओं में पिछड़ों का प्रतिनिधित्व उनकी संख्या और प्रावधानों के अनुरूप बहुत कम अर्थात असमान है अतः पिछड़ी जातियों का क्रीमी लेयर तत्काल प्रभाव से हटाया जाए ताकि पिछड़ों को आरक्षण का पूरा लाभ मिल सके।
उदाहरणार्थ- डीओपीटी की रिपोर्ट-2021-22 पर आधारित ओबीसी सहित पिछड़े वर्गों का केंद्रीय सेवा में प्रतिनिधित्व
संविधान की धारा 16 में (सामान्य जाति के गरीबों को ई. डब्ल्यू.एस. आरक्षण दे कर ) परिवर्तन कर ही दिया गया है तो अच्छा हो कि वर्तमान आरक्षण व्यवस्था को समाप्त करते हुए “जिसकी जितनी संख्या भारी उतनी उसकी हिस्सेदारी“ के सिद्धांत को लागू कर दिया जाए ताकि आरक्षण जैसी सुविधाओं के लिए देश में हो रही वैमनस्यता समाप्त हो सके।
संविधान के अनुच्छेद 340 में वर्णित प्रावधानों को पिछड़े वर्ग में आने वाली जातियों के हितार्थ सम्यक रूप से लागू किया जाए।
अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति जैसी सुविधायें दी जायें।
अथवा केंद्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में पिछड़ों को मिलने वाली सुविधाओं में एस. सी. एस. टी. आयोग द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं की भांति सभी सुविधाएं दी जाएं जैसे- विधायिकी, सांसदी, नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत, ग्राम पंचायत, क्षेत्र सुरक्षित करते हुए आई.ए.एस., पी.सी.एस., चिकित्सा आदि सहित सभी विभागों की नियुक्तियों में आनुपातिक आरक्षण सुविधा प्रदान की जाए। ताकि पिछड़ी जाति के लोग स्वयं को अलग ने समझे।
1 पिछड़ी जातियों के बच्चों को उच्च शिक्षा तक निशुल्क शिक्षा का प्रावधान किया जाए। ताकि वे भी मुख्य धारा से जुड़कर सम्मान पूर्वक जीवन यापन में सक्षम होकर देश के विकास में योगदान दे सकें।
2 चूंकि धनाभाव के कारण इन जातियों के लोग किसी भी बीमारी की दशा में चिकित्सा के अभाव से काल के मुहँ में समा जाते है। अतः इन्हें निः शुल्क चिकित्सा संबंधी सुविधा उपलब्ध कराई जाए।
निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू हो-
चूंकि निजी काम करते समय कॉर्पोरेट घरानों को सरकार द्वारा न्यूनतम मूल्य पर भूमि देते हुए किसी भी उद्योग आदि में समुचित छूट, सब्सिडी आदि भी मोहिया कराई जाती है किंतु निजी क्षेत्र के स्वामी, पिछड़ी जाति,निर्बल,निर्धन वंचितों को उचित छूट तक नहीं दे पाते। यह एक गैर बराबरी को बढ़ावा देना होता है। अतः सरकार द्वारा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा ओबीसी वर्गों के लिए ऐसे सभी निजी कॉर्पोरेट संस्थानों में आरक्षण अनिवार्य रूप से कानूनन लागू कर देना चाहिए।क्योंकि आरक्षण कोई दया या भीख नहीं अपितु लोगों को युगों तक वंचित रखे जाने के बदले प्रतिपूर्ति है।
न्यायिक आयोग का गठन किया जाए-
न्यायिक सेवाओं में कोलियम से इतर न्याय विभाग में न्यायिक मजिस्ट्रेट पद की न्यायपालिका के हर स्तर पर पिछड़ी जातियों/वर्गों को आरक्षण दिया जाए। न्यायिक आयोग गठित करते हुए न्यायिक मजिस्ट्रेट की प्रत्येक स्तर की परीक्षा यू०पी०एस०सी० द्वारा आयोजित कराई जाए ताकि प्रत्येक जाति वर्ग के अभ्यर्थियों को समान अवसर प्राप्त हो सके।
चूंकि कामगार/ सेवादार सभी लोग पिछड़ी जाति के रहे हैं जिन्हें शिल्पकार भी कहा गया है। और केंद्र में शिल्पकार अनुसूचित जाति की सूची में है अतः छूटे हुए शिल्पकारों जैसे कुम्हार / प्रजापति आदि को पुनः परिभाषित कर उन सभी को अनुसूचित जाति का सम्यक लाभ दिया जाए।
किसी भी कला को जीवंतत देने की जिम्मेदारी सरकार की होती है के क्रम में राष्ट्रीय स्तर पर माटी कला बोर्ड बनाते हुए उन राज्यों में भी इस बोर्ड का गठन किया जाए जिनमें अभी तक नहीं बनाया गया है।
संसद में महिलाओं के लिए जो 33% आरक्षण देने वाला बिल सरकार द्वारा पेश किया गया है जिसमें ओबीसी आरक्षण का जिक्र नहीं किया गया। जिससे स्पष्ट होता है कि यह बिल प्रभु वर्ग को ही महिलाओं को ढाल बनाकर को लाभ देने केलिए लाया गया है । जब इसे 2029 मे लागू किया जाना है तो संसद का विशेष सत्र बुलाकर इसे लागू करना ओबीसी के साथ -साथअन्य वर्गो को भी गुमराह करने जैसा है।
पिछड़ी जातियों का धरना- प्रदर्शन मंच इस बिल की घोर निन्दा करते हुए सरकार से मांग करता है कि इस महिला आरक्षण बिल में ओबीसी महिलाओं को जनसंख्या के आधार पर 33% में से 50% का आरक्षण को सुरक्षित करते हुए तब इस बिल को पारित कराया जाये।