
बाहर जाने से बचें, मास्क लगाएं, घर में प्रदूषण का प्रभाव न हो इसके लिए करें इंतजाम
Eros Times: नोएडा। नोएडा, ग्रेटर नोएडा, दिल्ली यहां तक कि पूरा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र प्रदूषण की चपेट में है। दिल्ली-एनसीआर में एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 400 के ऊपर पहुंच गया है, जो बहुत ही खतरनाक स्तर है। ऐसे में आम-स्वस्थ लोगों को सांस की दिक्कत, आंखों में जलन, दिल में भारीपन की शिकायत हो रही है। यह परिस्थितियां गर्भवती और उनके गर्भस्थ शिशु के लिए और भी खतरनाक साबित हो सकती हैं, इसलिए उन्हें बहुत ही सावधानी बरतने की जरूरत है।
यह बात अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा. ललित कुमार (आरसीएच) ने प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान दिवस पर बृहस्पतिवार को कही। जनपद में हर माह एक, नौ, 16 और 24 तारीख को प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान दिवस मनाया जाता है, जिसमें सभी स्वास्थ्य केन्द्रों पर गर्भवती की प्रसव पूर्व जांच की जाती है और उन्हें स्वास्थ्य देखभाल संबंधित सलाह दी जाती है।
डा. ललित का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान प्रदूषण का काफी खराब असर मां और होने वाले बच्चे पर पड़ सकता है, क्यों कि प्रदूषण एनीमिया को बढ़ाता है जो गर्भवती के लिए और भी खतरनाक साबित होता है। इसलिए हर गर्भवती को कोशिश करनी चाहिए कि वह प्रदूषण से बचे। प्रदूषण सांस, आंखों मे जलन, ह्रदय सहित अन्य कई बीमारियों को पैदा करता है और उन्हें बढ़ाता है। उन्होंने बताया- प्रदूषण में तरल व ठोस रूप में कई विषैले तत्व मौजूद होते हैं, जिससे यह हो सकती हैं। मां जब प्रदूषण युक्त वातावरण में सांस लेती है तो होने वाले शिशु को जन्म के साथ ही कार्डियोवस्कुलर रोग व सांस से जुड़ी समस्या सहित कई अन्य रोग हो सकते हैं, क्योंकि गर्भस्थ शिशु मां के शरीर के माध्यम से ही ऑक्सीजन ग्रहण करता है। प्रदूषण गर्भावस्था में शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालता है। शुद्ध वायु की कमी के कारण तनाव, डिप्रेशन, चिड़चिड़ापन जैसी समस्या हो सकती हैं।
गर्भावस्था में प्रदूषण से होने वाले नुकसान
डा. ललित ने बताया गर्भावस्था के दौरान महिला यदि प्रदूषित वातावरण में ज्यादा समय रहती है, तो तीसरी तिमाही में गर्भस्थ शिशु को ऑटिज्म होने का खतरा रहता है। ऑटिज्म एक तरह की न्यूरो-डेवलपमेंट डिसऑर्डर (मानसिक बीमारी) है। इसके अलावा प्रदूषण में ज्यादा समय बिताने से गर्भ गिरने की आशंका बढ़ भी जाती है, क्योंकि गर्भस्थ शिशु ठीक तरह से ऑक्सीजन ग्रहण नहीं कर पाता है। इसी कारण लो बर्थ वेट, प्रीमैच्योर जन्म आदि का खतरा भी रहता है।
अस्थमा पीड़ित गर्भवती को ज्यादा खतरा
गर्भवती यदि अस्थमा से पीड़ित है तो उसे प्रदूषण से सांस लेने की दिक्कत के अलावा ब्लड प्रेशर की समस्या बढ़ सकती है, जो आगे चलकर दिल किडनी व लिवर पर विपरीत असर डाल सकती है। ऐसी स्थित में गर्भस्थ शिशु का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है।
डा. ललित ने बताया – वातावरण में पीएम 2.5 कणों (पार्टिकुलेट मैटर) की मात्रा बढ़ने से हवा प्रदूषित हो जाती है। यह कण इतने छोटे होते हैं कि सांस के साथ कब फेफड़ों तक पहुंच जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता। टीबी रोगियों के लिए यह स्थिति परेशानी बढ़ा सकती है। इसके साथ ही श्वसन और हृदय रोगियों के लिए भी बढ़ता प्रदूषण खतरनाक है।
ऐसे कर सकते हैं बचाव
यदि बाहर जाना ज्यादा जरूरी नहीं तो घर में ही रहें।
बाहर जाना ही पड़े तो मास्क लगाकर ही निकलें, मल्टी लेयर गीले कपड़े का मास्क लगायें ।
घर के अंदर की वायु को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए पौधे घर में लगाएं।
हवा साफ रखने के लिए घर में एयर प्यूरीफायर भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
सुबह- शाम घर से बाहर निकलने से परहेज करें।
सांस लेने में कठिनाई हो रही है या घबराहट हो तो तुरंत चिकित्सक से संपर्क करें।
विशेषज्ञों के अनुसार कितना होना चाहिए एक्यूआई
0-50 के बीच अच्छा
51 से 100 के बीच संतोषजनक
101 से 200 के बीच मध्यम
201 से 300 के बीच खराब
301 से 400 के बीच बहुत खराब
इससे ऊपर खतरनाक