नदियां बचेंगी तो हम बचेंगेः स्वामी चिदानंद सरस्वती
Eros Times: इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) के राष्ट्रीय सांस्कृतिक मानचित्रण अभियान (एनएमसीएम) और जनपद सम्पदा विभाग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ‘नदी उत्सव’ के उद्घाटन सत्र में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री प्रकाश श्रीवास्तव ने कहा कि नदियां नहीं होतीं, तो जीवन भी नहीं होता। जल सारी सृष्टि का स्रोत है। उद्घाटन सत्र में परमार्थ निकेतन के प्रमुख व आध्यात्मिक गुरु स्वामी चिदानंद सरस्वती और प्रसिद्ध दार्शनिक व विद्वान आचार्य श्रीवत्स गोस्वामी सम्मानीय अतिथि तथा प्रख्यात पर्यावरणविद् ‘पद्मभूषण’ डॉ. अनिल प्रकाश जोशी विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। कार्यक्रम में आईजीएनसीए के अध्यक्ष ‘पद्मश्री’ रामबहादुर राय और सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी भी उपस्थित रहे।
इस अवसर पर चौथे नदी उत्सव के फिल्म कैटलॉग और नदी उत्सव स्मारिका का लोकार्पण भी किया गया।नदी उत्सव’ के पहले दिन सम्मानीय अतिथियों ने तीन प्रदर्शनियों का उद्घाटन किया। एक प्रदर्शनी में सांझी कला परम्परा के माध्यम से भारत के 15 घाटों को उकेरा गया है। इस प्रदर्शनी को उन सांझी कलाकारों ने अंजाम दिया है, जो बस अब गिनती के ही बचे हैं। वहीं दूसरी प्रदर्शनी में नदी यात्रा से सहेजी गई फोटोज को प्रदर्शित किया गया है। तीसरी प्रदर्शनी में छात्र-छात्राओं द्वारा बनाई गई पेंटिंग को प्रदर्शित किया गया है। बाल मन की इन तस्वीरों में भारत के वर्तमान और भविष्य को देखा जा सकता है। पहले दिन डॉक्यूमेंट्री फिल्म फेस्टिवल का शुभारम्भ जुबनाश्व मिश्रा निर्देशित 60 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘महानदी’ की स्क्रीनिंग से हुआ। देर शाम को भोपाल के पद्मरंग नृत्य अकादमी की श्वेता देवेंद्र और उनकी शिष्याओं ने अपनी भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुति से सबका मन मोह लिया। उन्होंने ‘दशावतारम्’ और ‘कालियामर्दन’ नृत्य को रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया।
उद्घाटन सत्र में डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि भारतीय परम्परा में, भारतीय परिवेश में नदी हमारे लिए सिर्फ भौगोलिक इकाई नहीं है, जो हमें पानी देती है। नदी हमारे लिए एक भावनात्मक इकाई है, एक आध्यात्मिक इकाई है, आस्था का प्रश्न है।
मुख्य अतिथि के रूप में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री प्रकाश श्रीवास्तव ने कहा कि बहुत दूर दूर से चलकर लोग नदियों में स्नान करने आते हैं। वो शारीरिक शुद्धि के लिए स्नान करने नहीं आते, वे मानसिक शुद्धि के लिए स्नान करने आते हैं, वे आध्यात्मिक शुद्धि के लिए स्नान करने आते हैं। उन्होंने शिप्रा नदी के तट पर सिहस्थ कुंभ में श्री चिदानंद सरस्वती के साथ अपनी पहली मुलाकात का उल्लेख करते हुए कहा कि शिप्रा नदी उस समय चुनौतियों का सामना कर रही थी और चिदानंद सरस्वती के अलावा किसी और ने शिप्रा की समस्याओं पर बात नहीं की। उन्होंने कहा कि हमें समकालीन समय में नदियों से संबंधित ऐसी विचार प्रक्रिया की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि नदियों के किनारे सभ्यताएं विकसित हुई हैं। उदाहरण के लिए, नील नदी के किनारे मिस्र सभ्यता, सिंधु नदी के किनारे सिंधु घाटी सभ्यता। हमारी संस्कृति ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के दर्शन में विश्वास करती है और नदियां उस दर्शन के केंद्र में हैं, क्योंकि यह लोगों को एक साथ लाती हैं और हम सभी को एकता में बांधती हैं। हमारी संस्कृति और धर्मग्रंथों में नदियों को उच्च स्थान दिया गया है और इसी संदर्भ में उन्होंने अनुच्छेद 51 (ए) का उल्लेख किया, जो भारतीय नागरिकों से जंगलों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उनका संवर्धन करने और जीवित प्राणियों के प्रति दया भाव रखने का आह्वान करता है।
स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि हमें गंगा, जमुना और नदियों को नहीं बचाना है, बल्कि खुद को बचाना है। नदियां बचेंगी, तो हम बचेंगे। इसके लिए दो चीजें जरूरी हैं, पहला जागरण और दूसरा, आचरण। उन्होंने कहा कि हमने धरती का दिल तोड़ दिया है, नदियों का दिल तोड़ दिया है। नदियां मौन हो गई हैं, नदियों के लिए अब हमें मुखर होना पड़ेगा। आचार्य श्रीवत्स गोस्वामी ने अपने संबोधन में भारतीय मनीषी गार्गी का उद्धरण देते हुए कहा कि पृथ्वी जल के आधार पर बुनी गई है, इसीलिए जल और नदियों का संरक्षण किया जाना चाहिए और उन्हें स्वच्छ रखा जाना चाहिए। उन्होंने सचेत भी किया कि यदि नदियों का जाल टूटा, तो मानव भी नष्ट हो जायेगा।
सत्र के अध्यक्ष के रूप में बोलते हुए रामबहादुर राय ने यमुना की दुर्दशा के बारे में बात की। 1986 का एक किस्सा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि उस समय यमुना की जो हालत थी, आज भी उसमें रत्ती भर परिवर्तन नहीं आया है। उन्होंने उम्मीद जाहिर की, न्यायमूर्ति श्री प्रकाश श्रीवास्तव के एनजीटी का अध्यक्ष बनने के बाद यमुना की स्थिति में सुधार आएगा। इस सत्र का संचालन एनएमसीएम के सहायक निदेशक श्री अभय मिश्रा ने किया और धन्यवाद ज्ञापन जनपद सम्पदा के विभाध्यक्ष डॉ. के. अनिल कुमार ने किया।