समय पर रोग का निदान, सही इलाज और अत्याधुनिक मेडिकल टैक्नोलॉजी के इस्तेमाल से कैंसर सरवाइवल रेट में काफी सुधार
Eros Times :नोएडा | कैंसर के बारे में यह आम धारणा है कि यह बड़ी उम्र के लोगों को ही अपना शिकार बनाता है। लेकिन अब ऐसा नहीं है, देखा गया है कि कैंसर उम्र के मामले में कोई फर्क नहीं करता। JAMA नेटवर्क में पब्लिश हुई एक स्टडी के मुताबिक, हाल के वर्षों में युवा वयस्कों में भी कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। यहां तक कि 50 साल से कम उम्र के लोगों में कैंसर की दर अभूतपूर्व रूप से सबसे ज्यादा दर्ज की गई है। यह काफी चिंता का विषय है और इस बारे में लोगों को जागरूक बनाने के मकसद से, फोर्टिस नोएडा ने आज अस्पताल में एक प्रेस सम्मेलन का आयोजन किया। इस दौरान, डॉक्टरों ने उन युवा मरीजों की स्टोरीज़ को मीडिया के साथ शेयर किया जिन्होंने कैंसर से डटकर मुकाबला किया। समय पर डायग्नॉसिस और सही उपचार मिलने से ये मरीज कैंसर को हराने के बाद अब न सिर्फ अपनी हैल्थ को वापस पा चुके हैं बल्कि हैल्दी लाइफ भी बिता रहे हैं।
ऐसा पहला मामला 8 साल के एक बच्चे का है जिसे तेज बुखार के साथ फोर्टिस नोएडा अस्पताल में भर्ती किया गया था। जांच के बाद पता चला कि वह एक हॉजकिन्स लिंफोमा का शिकार था जो कि रेयर ब्लड कैंसर है और फंगल सेप्सिस की वजह से रोग और भी जटिल हो चुका था। यदि समय पर मरीज का इलाज नहीं किया जाता तो यह रोग जानलेवा साबित हो सकता था। अस्पताल की मेडिकल टीम ने जरूरी देखभाल करने के साथ-साथ कीमोथेरेपी शुरू की। आज यह बच्चा स्वस्थ हो चुका है और उसने दोबारा स्कूल जाना शुरू कर दिया है।
दूसरा मामला 32 साल की एक महिला का है जिन्हें स्तन में गांठ की शिकायत के बाद एक सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए लाया गया था। जांच के बाद स्तन कैंसर की पुष्टि हुई और मरीज को मैस्टैक्टमी (स्तन हटाना) की सलाह दी गई। मरीज ने सेकेंड ओपिनियन के लिए फोर्टिस नोएडा में डॉक्टरों से संपर्क किया जहां उन्हें एक अन्य विकल्प – ब्रैस्ट कंजर्विंग सर्जरी के बारे में बताया गया। इसके बाद उनकी कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी की गई, मरीज के स्वास्थ्य में अब काफी सुधार है।
तीसरा मामला 39 साल की एक महिला का है और इनके स्तन में भी गांठ का पता चला थ। बायप्सी से पता चला कि उन्हें काफी आक्रामक किस्म का स्तन कैंसर था। मरीज के इलाज के लिए कीमोथेरेपी दी गई लेकिन उनके दोनों स्तनों का आकार और वज़न अधिक होने की वजह से उनकी पीठ में दर्द की शिकायत रहने लगी थी, और यह देखते हुए कीमोथेरेपी के बाद उनकी टू-फोल्ड सर्जरी की गई। उनके बाएं स्तन में ब्रैस्ट-कंज़र्विंग सर्जरी और दाएं स्तन में ब्रैस्ट रिडक्शन सर्जरी की गई। दोनों सर्जरी सफलतापूर्वक होने के बाद अब उनकी रेडियोथेरेपी भी पूरी हो गई और फिलहाल वह स्वास्थ्य लाभ कर रही हैं।
चौथा मामला 35 साल की एक महिला का है जिन्हें एबॉर्शन के बाद ब्लीडिंग की शिकायत के साथ भर्ती किया गया था। वह गंभीर रूप से एनीमिया की शिकार थीं और कीमोथेरेपी के अलावा उन्हें कई बार खून चढ़ाने की भी जरूरत थी। उनकी जांच के बाद पता चला कि वह एक रेयर कैंसर, जिसे कोरियाकार्सिनोमा कहा जाता है, की मरीज थीं। यदि उनके रोग का समय पर डायग्नॉसिस नहीं हो पाता तो वह जानलेवा भी साबित हो सकता था। कोरियोकार्सिनोमा एक तेजी से फैलने वाला कैंसर है जिसकी शुरुआत आमतौर से महिलाओं के गर्भाशय में होती है। खुशकिस्मती से इस मरीज के मामले में इसका समय पर पता लगा लिया गया और सफल उपचार भी हो गया। अब वह पूरी तरह से स्वस्थ हैं और हैल्दी, नॉर्मल जीवन बिता रही हैं।
इन मामले का ब्योरा देते हुए, डॉ शुभम गर्ग, डायरेक्टर, सर्जिकल ऑन्कोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पीटल नोएडा ने कहा, “पिछले कुछ वर्षों में, युवाओं में कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है। महिलाओं में ब्रैस्ट और एंडोमीट्रियल कैंसर के मामले बढ़े हैं। उधर, पुरुषेां में गर्दन और सिर के कैंसर तथा लंग कैंसर के मामले ज्यादा देखे गए हैं। यह सही है कि समय पर डायग्नॉसिस होना जरूरी है। कैंसर के मामलों में मरीजों के इलाज के परिणाम काफी हद तक इस बात पर निर्भर करते हैं कि उनका डायग्नॉसिस किस स्टेज में हुआ था। शुरुआती स्टेज में सही डायग्नॉसिस से मरीज के चने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। अक्सर यह देखा गया है कि मरीज बायप्सी और कीमोथेरेपी करवाने से डरते हैं या बचना चाहते हैं और ऐसे में उनके डायग्नॉसिस में देरी होती है जिसकी वजह से अब बाद में डायग्नॉसिस होता है तो रोग एडवांस स्टेज में पहुंच चुका होता है। हमें यह समझना होगा कि कैंसर के उपचार का मरीज को पूरा फायदा तभी मिल सकता है जबकि डायग्नॉसिस शुरुआती स्टेज में हो जाए। इसलिए, नियमित रूप से स्क्रीनिंग करवाते रहें और हैल्थ-चेक से न बचें तथा किसी भी तरह का असामान्य लक्षण दिखायी दे तो डॉक्टर सें संपर्क करने में भी देरी नहीं करनी चाहिए।”
डॉ रजत बजाज, डायरेक्टर, मेडिकल ऑन्कोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पीटल, नोएडा ने कहा, “पिछले कुछ वर्षों में युवाओं में कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं। इसका प्रमुख कारण उनकी बदलती जीवनशैली और कुछ हद तक आनुवांशिकी (जेनेटिक्स) भी है। युवाओं में धूम्रपान और अल्कोहल की लत पहले से कहीं ज्यादा बढ़ी है, साथ ही उनके भोजन में सोडियम की मात्रा अधिक होती है जबकि फाइबर और फल कम होने लगे हैं। इनके अलावा, कई अन्य रिस्क फैक्टर्स भी जुड़े हैं, जैसे मोटापा, निष्क्रिय जीवनशैली, मधुमेह और पर्यावरण प्रदूषण तथा रेड मीट और अधिक शुगरयुक्त वेस्टर्न डायट्स का बढ़ता चलन, तथा नींद की कमी। हम पिछले दो-तीन वर्षों से फोर्टिस हॉस्पीटल में हम कई तरह के कैंसर रोगों का उपचार इम्यूनोथेरेपी और टार्गेटेड थेरेपी से कर रहे हैं। हम कई तरह के कैंसर, जैसे लंग कैंसर, किडनी कैंसर, हेपेटोसैलुलर, ब्रैस्ट कैंसर आदि के इलाज के लिए इम्यूनोथेरेपी से करने की सलाह कर रहे हैं।”