खोच: (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन) – पश्चिमी भारत के खोच गांव में अपनी झोपड़ी के बाहर अपने एक साल के पुत्र सोनू को स्तनपान करा रही सोनी वादवी ने बताया कि चार महीने पहले गंभीर कुपोषण से कैसे उसका बेटा मरते मरते बचा था।
अन्य ग्रामीणों की तरह यह परिवार भी पिछले साल महाराष्ट्र के पालघर जिले के इस गांव को छोड़कर काम करने के लिये बाहर गया था। कई महीनों के बाद जब वे वापस अपने गांव लौटे उस समय सोनू इतना कमजोर था कि उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था।
समय पर इलाज होने से वादवी का बेटा तो स्वस्थ हो गया, लेकिन अप्रैल से नवंबर 2016 के बीच पालघर में कुपोषण से जुड़ी बीमारियों से करीबन 400 अन्य बच्चों की मौत हो चुकी है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि हर साल काम के लिये प्रवास पर जाने वाले लोगों के बच्चों में इस तरह की बीमारियां बढ़ रही है।
बेरोजगारी और गरीबी से जूझ रहे जनजातीय क्षेत्र-पालघर में पिछले तीन वर्षों में कुपोषण से 1600 बच्चों की जान जा चुकी है। बच्चों की मौत की खबरें सुर्खियों में आने के बाद से सरकार इस समस्या के समाधान के लिये सचेत हुई है।
खोच देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई से केवल 150 किलोमीटर दूर है और यह देश के सबसे समृद्ध राज्यों में से एक गुजरात की सीमा के पास बसा हुआ है, लेकिन यहां बेरोजगारी के कारण अपने बच्चों के पालन- पोषण के लिये माता पिता काम की तलाश में अन्य शहरों में जाने को मजबूर हैं।
जनजातीय विकास आंदोलन-वयम के संस्थापक मिलिंद थत्ते ने कहा, “मुंबई के नजदीक होने के बावजूद पालघर में कुपोषण की समस्या चौंकाने वाली है, लेकिन समस्या की जड़ यहां के लोगों का काम के लिये मुंबई जाना है।”
“पालघर से लोग काम करने के लिए मुंबई जाते हैं, लेकिन वहां रहना अधिक महंगा होता है। वे पैसे बचाने के लिए खाना नहीं खाते हैं।”
ग्रामीण दिसंबर से पालघर छोड़कर मुंबई के सैटेलाईट शहर- ठाणे और भिवंडी जाना शुरू करते हैं। वहां वे निर्माण स्थलों या सड़क निर्माण परियोजनाओं पर 12 घंटे की पारी में काम करते हैं।
मॉनसून के मौसम में जब निर्माण कार्य बंद हो जाते हैं, तब मजदूर अपने गांव लौट आते हैं और जुलाई से अक्टूबर तक वे बेरोजगार रहते हैं। फसल कटाई का मौसम शुरू होने पर ही वे खेतों में दिहाड़ी मजदूरी पर काम करते हैं।
स्थानीय लोग सितंबर को “भुखमरी का महीना” कहते हैं, क्योंकि इस दौरान कई लोग बेरोजगार होते हैं और सबसे अधिक संख्या में बच्चों की मौत होती है।
दिसंबर में फसल कटाई का काम समाप्त होना ग्रामीणों के लिये अपना घर छोड़कर काम की तलाश में बाहर जाने का संकेत है।
वादवी ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, “अभी हमारे पास कोई काम नहीं है, लेकिन हम जल्दी ही यहां से बाहर चले जायेंगे। हम ‘सेठ’ (निर्माण स्थल के ठेकेदार) के आने का इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि वह हमें यहां से ले जायेगा।”
“सबसे निचले पायदान पर”
कटकरी जनजाति के नामदेव सावरा ने खोच में अपनी झोपड़ी की एक दीवार पर देवी-देवताओं के रंगीन चित्र उकेरे हुये हैं।
इसलिये जब सितंबर में उसके बेटे ईश्वर की मृत्यु हुई तो उस बच्चे का एक ब्लैक एंड व्हाइट फोटो भी उसने इस पूजनीय दीवार पर टांग दिया।