EROS TIMES : देशभर में अनेक धर्म-सम्प्रदाय प्रचलित हैं। सभी धर्मों ने मानव जीवन के अंतिम लक्ष्य को स्वीकार किया है, वह है परम सत्ता या संपूर्ण चेतन सत्ता के साथ सम्बन्ध स्थापित करना। गुरू नानक जी की शिक्षाएं मानवता के लिए प्रेम, सेवा, भाईचारा और सत्य, की प्रेरणा स्त्रोत हैं। उनका धर्म और अध्यात्म लौकिक तथा पारलौकिक सुख-समृद्धि के लिए श्रम, शक्ति एवं मनोयोग के सम्यक नियोजन की प्रेरणा देता है। गुरूनानक जी की जयंती पर सामाजिक सछ्वाव को बढ़ाने के लिए हम सभी को समर्पित होना चाहिए।
दीपावली के पन्द्रह दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा को जन्मे गुरु नानक देव सर्वधर्म सद्भाव की प्रेरक मिसाल हैं। उनमें प्रखर बुद्धि के लक्षण बचपन से ही दिखाई देने लगे थे। वे किशोरावस्था में ही सांसारिक विषयों के प्रति उदासीन हो गये थे। गुरु नानक देव जी ने गांव तलवंडी में बाबा कल्याणचंद्र उर्फ महिता कालू पटवारी तथा माता तृप्ता के घर में अवतार लिया। वह समय दुनिया में धर्म, कला, साहित्य, तथा ज्ञान के दोबारा स्थापित होने का समय था।
गुरु नानक देव जी को 7 साल की उम्र में गोपाल पंडित से हिंदी तथा नौ साल की आयु में पंडित ब्रिजलाल से संस्कृत पढ़ने के लिए भेजा। 13 साल की उम्र में गुरु जी फारसी की तालीम लेने मौलवी कुतुबुद्दीन के पास गए। गुरु नानक देव जी ने यहां उस्तादों से संसारी शिक्षा गृहण की, वहीं उन उस्तादों को सच्ची शिक्षा (रब्बी ज्ञान) का पाठ भी पढ़ाया। वे अपने व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्म-सुधारक, समाज सुधारक, कवि, देशभक्त एवं विश्वबंधु- सभी गुणों को समेटे हैं।
प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन नानक देव का जन्मोत्सव मनाया जाता हैं। इस वर्ष गुरु नानक जयंती 4 नवंबर को मनाई जा रही। गुरु नानक जयंती सिख समुदाय बेहद हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ दीपावली के जैसे ही पर्व होता है। इस दिन गुरुद्वारों में शबद-कीर्तन किए जाते हैं। जगह-जगह लंगरों का आयोजन होता है और गुरुवाणी का पाठ किया जाता है। उनके लिये यह दस सिक्ख गुरुओं के गुरु पर्वों या जयन्तियों में सर्वप्रथम है।
गुरु नानक देव जी के अवतार धारण से पहले भारत में वैदिक धर्म का बोलबाला था। भारतीय समाज उलझन से भरपूर, जातियों तथा धार्मिक सम्प्रदायों में बंटा हुआ था। लोगों में आपसी भाईचारे एवं एकसुरता की भावना पूरी तरह आलोप हो चुकी थी। इसमें तब्दीली लाने के लिए गुरु नानक देव जी, भाई मरदाना जी को साथ लेकर देश-विदेशों में गए। उन्होंने भटकी हुई लोकाई को एक नवीन नारा, ‘न हिंदू न मुसलमान।’ दिया। मनुष्यता को उबारने वाले इस नारे की खूब चर्चा हुई। अपनी इस क्रांतिकारी सोच के कारण गुरुजी ने देश-विदेश के कई दौरे भी किए, जिन्हें सिख इतिहास में उदासियों के नाम से जाना जाता है।
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