वाशिंगटन इरोस टाइम्स: पाकिस्तान के साथ युद्ध की सूरत में भारत की जो पूर्व में नीति रही है उससे पूरी दुनिया भली भांति परिचित है। दोनों देशों के परमाणु संपन्न होने के बाद भी भारत की इस नीति में कुछ समय पहले तक कोई परिवर्तन नहीं आया था। लेकिन अब इसमें बदलाव आता दिखाई दे रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि युद्ध की सूरत में भारत पाकिस्तान पर परमाणु हमला करने से पीछे नहीं हटेगा। इतना ही नहीं वह यह भी मानते हैं कि भारत की इस बदलाव वाली नीति में पाकिस्तान पर होने वाला परमाणु हमला इतना व्यापक होगा कि वह फिर कभी
भी खड़ा नहीं हो सकेगा।
न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर के मुताबिक भारत की इस नीति में अब स्पष्ट तौर पर पूर्ण रूप से बदलाव आ चुका है। अखबार ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रेगन द्वारा वर्ष 1984 में दिए गए एक बयान का जिक्र इसमें किया गया है। जिसमें उन्होंने कहा था कि परमाणु युद्ध को कभी जीता नहीं सकता है और न ही इसको कभी लड़ा ही जाना चाहिए। उनके दिए इस बयान का आश्ाय इस तरह के युद्ध से होने वाली हानि से था, जिसको जापान के हिरोशिमा और नागासाकी में साफतौर पर देखा गया था।
लेकिन तब से लेकर अबतक वक्त पूरी तरह से बदल चुका है। परमाणु हमले को लेकर भारत की नीति भले ही अब बदल रही हो, लेकिन दुनिया के दूसरे परमाणु शक्ति संपन्न देशों की सोच इस बारे में पहले से ही बदली हुई है। सूत्रों की माने तो विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान अपनी परमाणु ताकत की आड़ में आतंकवाद को एक हथियार के तौर पर लगातार इस्तेमाल कर रहा है और यह जग जाहिर है कि भारत लंबे समय से इसका भुगतान कर रहा है। अखबार के मुताबिक विशेषज्ञों के हवाले से लिखा है कि ऐसी सूरत में भारत के सब्र का बांध टूट सकता है। वह परमाणु हथियारों को पहले इस्तेमाल न करने की अपनी नीति की दोबारा से समीक्षा कर सकता है ताकि पाकिस्तान की किसी अगली हरकत से पहले ही उसको करारा जवाब दिया जा सके।
आपको बता दें कि पिछले दिनों रक्षा मंत्री के पद पर रहते हुए मनोहर पर्रीकर ने भी इसी तरह का एक बयान दिया था। उनका कहना था कि पाकिस्तान से युद्ध की सूरत में भारत अब परमाणु हमला करने से कतई पीछे नहीं हटेगा। उनके इस बयान ने समूची दुनिया में मानो खलबली मचाने का काम किया था। हालांकि बाद में उन्होंने इसको अपनी निजी राय बताया था। भारत की इस ओर बदलती नीति का इशारा उन्होंने पिछले साल नवंबर में दिया था। उनका कहना था कि आखिर क्यों भारत को परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की पहल करने से खुद को रोकना चाहिए।
इसके बाद पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने भी यह माना कि किसी परमाणु ताकत संपन्न देश के खिलाफ भारत परमाणु हथियार कब इस्तेमाल करेगा, इससे जुड़ी स्थितियां साफ नहीं हैं। इन तमाम बयानों के बाद इस सोच को बल मिला है कि भारत की नीति में स्पष्ट तौर पर बदलाव आ रहा है। अखबार के मुताबिक विशेषज्ञ अब यह सोचने लगे हैं कि क्या भारत परमाणु हथियारों के इस्तेमाल के सिद्धांतों को नई दिशा दे रहा है?
युद्ध में परमाणु हमले का विकल्प खुले रखने वाली इन अटकलों को उस वक्त और ज्यादा बल मिला, जब मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी में एक कांफ्रेंस के दौरान इस मामले के विशेषज्ञ विपिन नारंग ने अपनी राय इस विषय पर रखी। वाशिंगटन में आयोजित इंटरनेशनल न्यूक्लियर पॉलिसी कांफ्रेंस अपनी बात रखते हुए उनका कहना था कि भारतीय उप महाद्वीप के घटनाक्रम और पाकिस्तान द्वारा जंग के मैदान में इस्तेमाल हो सकने वाले परमाणु हथियार विकसित करने की लगातार कोशिशें भारत के रुख में बड़ा बदलाव कर सकती हैं। उनके मुताबिक, भारत परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से जुड़ी ‘पहले इस्तेमाल न करने की नीति’ को छोड़कर इसमें बदलाव कर सकता है। अगर उसे लगता है कि पाकिस्तान उसके खिलाफ किसी भी तरह का कोई न्यूक्लियर हमला करने की योजना बना रहा है, तो ऐसी सूरत में वह पहले ही उस पर परमाणु हमला कर सकता है और उसे नेस्तनाबूत कर सकता है।
अखबार के मुताबिक यदि ऐसा होता है तो यह हमला पारंपरिक हमलों की तरह नहीं होगा। नारंग के मुताबिक भारत इस हमले में पाकिस्तान के कम दूरी वाले परमाणु हथियारों को ही तबाह करने तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि वह एक बड़ा और व्यापक हमला कर पाकिस्तान की कमर तोड़ देगा। नारंग के मुताबिक भारत के इस हमले का मकसद पाकिस्तान में मौजूद समस्त परमाणु हथियारों के जखीरे को खत्म होगा। इसके पीछे भारत की सोच बेहद साफ होगी कि पाकिस्तान पर बार बार छोटे-छोटे हमले करने की बजाए एक बार में ही उसका काम तमाम कर दिया जाए।
अखबार की खबर के इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि भारत अब पाकिस्तान को पहले हमला करने का मौका नहीं देगा। न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा इसका जिक्र करने से पहले इंस्टिट्यूट ऑफ एनालेसिस एंड स्टडीज के एक लेख में इस तरह की बातों का जिक्र किया गया था। इसमें साफतौर पर कहा गया है कि वर्ष 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद पहले परमाणु हमला न करने की भारत की नीति में बदलाव के स्पष्ट संकेत सरकार की तरफ से दिए गए थे।