इम्युनोथिरेपी के उचित उपयोग से कैंसर से सबसे गंभीर रूप से पीडित रोगियों को भी नई उम्मीद मिल सकती हैं। इम्युनोथिरेपी़ दुनिया भर में कैंसर के उपचार में इस्तेमाल किया जा रहा नवीनतम विकास हैं। चूंकि यह थेरेपी इस्तेमाल में बेहद सुरक्षित हैं, इसलिए जिन रोगियों को इसको जरूरत है वे संभवतः कम से कम समय में इसका लाभ उठा सकते हैं। अपोलो अस्पताल में वरिष्ठ मेडिकल अंकोलाॅजिस्ट के रूप में काम कर रहे डाॅ॰ मनीष सिंघल ने बताया।
इस नई अभूतपूर्व थेरेपी के प्रभावकारी स्वरूप के बारे में डाॅ॰ मनीष सिंघल ने बताया, मनुष्यों में कैंसर से जुड़े चिकित्सकीय अध्ययन से यह उम्मीद जागी है कि मानव शरीर कैंसर कोशिकाओं के साथ बाहरी वस्तु की तरह व्यवहार करने लगेगा। इसका मतलब यह हुआ कि हमारी अपनी रोग प्रतिरक्षण प्रणाली किसी बाहरी के कण या बैक्टीरिया की तरह ही कैंसरजन्य कोशिकाओं को नष्ट करने में सक्षम हो जाएगी और इस तरह से मरीज का जीवन सुरक्षित रह पाएगा। हमारे शरीर की रोग प्रतिरक्षण प्रणली सामान्य स्थिति में ऐसा इसलिए नही कर पाती है क्योंकि कुछ खास रिसेप्टर शरीर की रोग प्रतिरक्षण क्षमता तथा कैंसरजन्य कोशिकाओं के बीच आ जाती हैं। लेकिन जब इम्युनोथिरेपी का इस्तेमाल किया जाता है तो कैंसर कोशिकाओं जूझने वाली इस रोग प्रतिरक्षण प्रणाली के सामने से यह अवरोध हट जाता है और हमारा शारीर उसमें नैसर्गिक रूप् से मौजूद तंत्र की मदद से कैंसर कोशिकाओं को समाप्त कर देता हैं।
56 वर्षीय महिला एक तरह के त्वचा कैंसर – मेलानोमा से जूझ रही थी। कैंसर के लाइलाज होने के कारण उनके जिंदा रहने की उम्मीद बहुत क्षीण हो गई थी। कैंसर के फैलने के कारण उनकी हालत और बिगड़ने लगी और कैंसर का रोग उनके शरीर में अनेक स्थनों पर फैल गया।
वह रोज कैंसर के कारण मौत के खतरे तथा भयानक दर्द का सामना कर रही थी लेकिन उस महिला रोगी को उस समय जीवन की नई उम्मीद बंधी जब नई मेडिकल रिसर्च पर आधरित इम्युनोथेरेपी के जरिए उनका उपचार शुरू हो गया। अब तक लाइलाज माने जाने वाला कैंसर – मेलानोमा का प्रभाव मरीज पर धिरे धिरे कम होने लगाा।
डाॅ॰ सिंघल ने न्यू इंग्लैंड जर्नल आॅफ मेडिसन (एनईजेएम) में प्रकाशित एक परीक्षण का जिक्र करते हुए कहा कि इम्युनोथेरेपी से उपचार पाने वाले 70 प्रतिशत रोगी एक वर्ष बाद भी जीवित थे जबकि जिन लोगों ने मेलानोमा के इलाज के लिए कीमोथेरेपी ली उनमे से मात्र 35 प्रतिशत मरीज ही एक साल बाद जीवित बचे थे। यह अध्ययन 418 मरीजों पर किया गया।
मेलानोमा से पीड़ित 945 अन्य रोगियों पर हुए एक अन्य अध्ययन की रिपोर्ट से पता चलता है कि 70 प्रतिशत से अणिक वैसे रोगियों में टृयूमर में कमी देखी गई जो अन्य उपचार के साथ – साथ इम्युनोथेरेपी का भी इस्तेमाल करा रहे थे। यह रिपोर्ट एनईजेएम में प्रकाशित हुई।
शोध आंकड़ो से पता चलता है कि फैफड़ो, सिर एंव गर्दन, किडली एंव ब्लेडर कैंसर जैसे लाइलाज माने जाने वाले गंभीर किस्म के कैंसर से पीड़ित लाइलाज मरीजों में इम्युनोथेरेपी की बदौलत 2 साल की जीवित रहने की दर होती है और यह व्यवहार में 0 प्रतिशत की तुलना में 20 प्रतिशत की वृद्धि है और इस तरह से जीवित रहने की दर आश्चर्यजनक रूप से 200 प्रतिशत तक हो जाता हैं।
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