दशहरे का इतिहास, पहली बार कब हुआ रावण दहन

EROS TIMES: हर साल दशहरे के दिन भारत में कई जगह रावण दहन होता है, इस दिन लोग रावण का एक पूतला जला कर इस तैयार को मानते है। इस त्यौहार को मानने का मकसद है बुराई  पर अच्छी की जीत। दशहरा का त्योहार आ चुका है और 12 अक्टूबर को एक बार फिर 2024 में विजयादशमी का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन फिर जगह जगह रामलीला होगी और मेला लगाया जाएगा।
इसे बुराई पर अच्छाई की जीत क्यू बोलते है इसके पीछे भी एक रोमांचित कथा है।
एक बार लंका के राजा रावण ने अपने अहंकार में आकर
श्री रामचंद्र की पत्नी माता सीता का अपहरण कर लिया था। फिर कई बार युद्ध होने के बाद प्रभु राम ने रावण का वध कर माता सीता को अयोध्या वापस लेके आए थे।
इस प्रकार उस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत हुई थी।
लेकिन यह पुतला जलाने की परंपरा और इसका इतिहास बहुत पुराना नहीं है बल्कि आजादी के बाद ही इसकी परंपरा शुरू हुई है। रावण के पुतले को सबसे पहले बिहार के एक शहर  जोकि जो आज झारखंड राज्य का हिस्सा है उदर जलाया गया था।  कहा जाता है 1948 में सबसे पहले रांची शहर के जोकि में किया गया  था।
बंटवारे के बाद साल 1948 में पाकिस्तान से भारत आए कुछ शरणार्थी परिवारों ने रावण दहन का कार्यक्रम किया था। यहां पर शुरुआत में यह कार्यक्रम बहुत छोटे स्तर पर किया गया लेकिन बाद में इसे और ज्यादा भव्य रूप में किया जाने लगा।
राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान में सबसे पहले रावण दहन कार्यक्रम 17 अक्टूबर 1953 को किया गया था। इस रावण के पुतले को कागज या लकड़ी के बजाय कपड़ों की मदद से तैयार किया गया था।
दशमी के दिन भगवान राम ने रावण को हराया था, इसलिए इस दिन रावण का पुतला जलाया जाता है। यह बुराई, घमंड, और अन्याय पर अच्छाई, सच्चाई और धर्म की जीत का प्रतीक है। इस त्योहार से हमें यह सीख मिलती है कि बुराई का अंत होता है और अच्छाई हमेशा जीतती है।

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