नई दिल्ली इरोस टाइम्स: अगले दो सप्ताह के अंदर चुनाव आयोग नई इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) का परीक्षण करने जा रहा है। अब ये नई मशीनें पुरानी ईवीएम का बेहतर प्रोटोटाइप होंगी। परीक्षण सफल होने पर आयोग 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए 10 लाख ईवीएम तैयार करवा सकता है। आपको बता दे की वर्तमान में इस्तेमाल हो रही मॉडल 3 ईवीएम पूरी तरह सुरक्षित हैं, इनमें किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। इन्हीं मशीनों के नए प्रोटोटाइप में सुरक्षा से जुड़ी कुछ खास खूबियां जोड़ी गयी हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी का कहना है कि, ‘हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव नतीजों को लेकर हारने वाली कई राजनीतिक पार्टियों ने ईवीएम में गड़बड़ी होने का आरोप लगाया था। किसी राज्य में चुनावी नतीजों को बदलने के लिए ईवीएम बनाने वालों, जिले के चुनाव अधिकारी, मतदान अधिकारी, सिक्योरिटी गार्ड व राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच सांठ-गांठ जरूरी है। ऐसा हुआ तो किसी एक चरण पर ईवीएम के साथ छेड़छाड़ अगले चरण में पकड़ में आ जाएगी।’
अन्य देशों में इस्तेमाल होता है
- भारत के अलावा देशों जैसे की ब्राजील, नॉर्वे, जर्मनी, वेनेजुएला, कनाडा, बेल्जियम, रोमानिया, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, इटली, आयरलैंड, यूरोपीय संघ और फ्रांस में इस्तेमाल।
ईवीएम निर्माण
- रक्षा मंत्रालय के तहत बेंगलुरु की भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) और परमाणु ऊर्जा मंत्रालय के तहत हैदराबाद की इलेक्ट्रॉनिक्स कारपोरेशन ऑफ इंडिया (ईसीआइएल) ईवीएम का निर्माण करते हैं।
- दोनों कंपनियां एक-दूसरे से अलग ईवीएम बनाती हैं। कुछ ही इंजीनियरों को ईवीएम के सोर्स कोड की जानकारी रहती है। बाकि सब के लिए यह गुप्त रखा जाता है। सोर्स कोड भी कंपनियों में ही लिखा जाता है, और इसे सुरक्षित रखा जाता है।
दो इकाईयों से बनी है
- पहली है बैलट यूनिट यानी मतदान इकाई। इस भाग में उम्मीदवारों के नाम की सूची के सामने बटन लगे होते हैं। इन्हीं बटनों को दबाकर मतदाता अपना मत डालता है।
- दूसरा भाग है कंट्रोल यूनिट यानी नियंत्रण इकाई। इस भाग में वोटों की गिनती की जाती है।
- इसे मतदान केंद्र में तैनात अधिकारी को सौंप दिया जाता है।
अब तक तीन मॉडल बने है
एम1 (मॉडल 1)
- 1989-2006 के दौरान निर्माण
- 2014 के आम चुनावों में आखिरी बार इस्तेमाल
- 9.2 लाख मशीनों का निर्माण 2006 तक
- 1.4 लाख अब तक नष्ट की गईं
एम2 (मॉडल 2)
- 2006-2012 के दौरान निर्माण
- 5.57 लाख : बैलट यूनिट, 5.3 लाख : कंट्रोल यूनिट
- रीयल टाइम क्लॉक का फीचर जोड़ा गया, जिससे हर बार
बटन दबाने पर समय अंकित होता है।
एम3 (मॉडल 3)
- 2013 व उसके बाद निर्माण
- 3.4 लाख : बैलट यूनिट, 3.36 लाख : कंट्रोल यूनिट
- छेड़छाड़ से बचाव के लिए इसमें एक खास फीचर जोड़ा गया। एक पेंच भी निकलने पर यह मशीन काम करना बंद कर देती है।
- चुनाव आयोग के अनुसार 2019 चुनाव के लिए 10 लाख तक मशीनें बनाई जानी हैं।
कोई हेरफेर की गुंजायश नहीं
- 2006 के बाद बनी मशीनों की बैलट यूनिट में वायरलेस, वाई-फाई या ब्लू टूथ उपकरण हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
तैनाती की त्रिस्तरीय सुरक्षा
- चुनाव होने वाली जगह पर इसकी तैनाती की प्रक्रियाएं इतनी जटिल है कि इनसे छेड़छाड़ करना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन दिखने लगता है।
ऐसे की जाती हैं नष्ट
- ईवीएम का जीवनकाल 15 साल रहता है।
- 15 साल बाद सभी इकाईयों को हटाकर प्लास्टिक को कुचल दिया जाता है।
- कोड लिखी हुई चिप को मुख्य निर्वाचन अधिकारी की मौजूदगी में नष्ट किया जाता है।