मौलिक भारत की समझ नहीं आ रहा कि भारत (टाटा समूह की एयर इंडिया) जो अगले तीन चार सालो में जो आठ लाख करोड़ रुपयों की क़ीमत के जो 500 यात्री विमान अमेरिका – फ़्रांस – इंग्लैंड से ले रहा है उसमे ख़ुशी मनाने की क्या बात ?
सच्चाई यह है कि यह कदम –
1) “आत्मनिर्भर भारत”, “मेक इन इंडिया” व “मेड इन इंडिया” की भारत सरकार की नीतियों पर तमाचा है।
2) जब हम अंतरिक्ष में एक के बाद एक रॉकेट भेज रहे हैं, तेजस जैसे लड़ाकू विमान व हल्के हेलीकॉप्टर बना रहे हैं और हमारा रक्षा निर्यात हर साल कई गुना बढ़ रहा है, ऐसे में यात्री विमानों के विकास में हमारे देश को क्या परेशानी है ?
3) क्या बढ़ते हुए जलवायु परिवर्तन के ख़तरे के बीच देश में वायु यातायात बढ़ाना सही नीति है? एक ओर तो हम इलेक्ट्रिकल वीहिकल व ग्रीन एनर्जी की ओर बढ़ रहे हैं और दूसरी ओर जीवाश्म ईंधन पर आधारित वायुयान बड़ी मात्रा में ख़रीद रहे हैं व हवाई अड्डो का विकास कर रहे हैं। क्या इन कदमों से देश कार्बन उत्सर्जन कम कर पाएगा? याद रहे वर्ष 2022 में ही देश को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के कारण 13 लाख करोड़ रुपयों का नुक़सान हुआ है। जो हर बर्ष बढ़ते ही जाना है।
4) बेहतर होता कि भारत सरकार व निजी क्षेत्र विमान तकनीकी व प्रौद्योगिकी के शोध व उनके लिए हरित ऊर्जा से संचालन की संभावना पर कार्य करती किंतु अपनी क़ीमती विदेशी मुद्रा अमीर देशों की अर्थव्यवस्था का ईंधन बनाने के लिए खर्च करना सही निर्णय नहीं।
5) समय की आवश्यकता है कि भारत सरकार अपनी बढ़ती जीडीपी व विकास योजनाओं के बीच किस प्रकार सन् 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन तक आएगी इसकी कार्ययोजना देश के सामने रखे और बर्षवार इसमें किस प्रकार उतार चढ़ाव आएँगे इनका विस्तृत विवरण दे।
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है की संवेदनशील व कर्मठ भारत सरकार शीघ्र ही जनता में फैली आशंकाओं को दूर कर सुरक्षित व दीर्घकालिक भविष्य के बारे में देश को संतुष्ट करेगी व 500 यात्री विमान ख़रीद के फ़ैसले पर फिर से विचार करेगी।
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