EROS TIMES: एमिटी विश्वविद्यालय के एमिटी इंस्टीटयूट फॉर संस्कृत स्टडीज एंड रिसर्च द्वारा शिक्षा मंत्रालय के भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के सहयोग से ‘‘विकसित भारत हेतु संस्कृत ज्ञान परंपरा की उपयोगिता’’ विषय पर चतुर्थ वार्षिक सम्मेलन ‘‘संस्कृत संवाद 2024’’ का आयोजन किया गया।। इस कार्यक्रम का शुभारंभ शिक्षा मंत्रालय के भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के सचिव प्रो सच्चिदानंद मिश्र और एमिटी इंस्टीटयूट फॉर संस्कृत स्टडीज एंड रिसर्च के विभागाध्यक्ष डॉ श्रुतिकान्त पांडेय द्वारा किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ शिक्षा मंत्रालय के भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद के सचिव प्रो सच्चिदानंद मिश्र ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने विकसित भारत 2047 मिशन के अंर्तगत देश को 100 वीं जंयती तक विकसित बनाने का लक्ष्य रखा है। सर्वप्रथम हमें यह जानना है कि विकास की अवधारणा क्या है। क्या भारत को भी उसी आधार पर विकास करना चाहिए जिस पर चीन, अमेरिका, रशिया विकसित बने है या हमारा मापदंड और से अलग होना चाहिए। अभी तक यह मापदंड है कि जिस देश में व्यक्ति की प्रति आय अधिक है, चिकित्सा व शिक्षा सुविधायें उपलब्ध है, रोजगार आदि को आधार बनाकर उसे विकसित घोषित किया गया है। भौतिक सुविधाओं व भौगोलिक आधार पर भारत के विकसित देश बनने की बात केवल पाश्चात्य मापदंडों के आधार पर नही की जा सकती क्योकि हमें किसी भी देश का प्रतिबिंब नही बनना है। भारत केवल भूमि का हिस्सा नही है बल्कि पंरपराओं, इतिहास, संस्कृत व मूल्यों से बना एक देश है जिसने सदैव सबको सुखी रखने के धर्म को प्राथमिकता दी है। हमें अपने मूल्यों और संस्कृती को सुरक्षित रखते हुए विकास करना होगा। भारत को अपनेे विश्व बंधुत्व के मूल्यों को आधार बनाकर विकास करना होगा जिसमेे हम सभी की भूमिका अह्म होगी।
एमिटी इंस्टीटयूट फॉर संस्कृत स्टडीज एंड रिसर्च के विभागाध्यक्ष डॉ श्रुतिकान्त पांडेय ने स्वागत करते हुए कहा कि आज के वर्षो पूर्व जब कभी मनुष्य ने पहला शब्द रचा, कहा या सुना होगा तो वह संस्कृत में होगा। जब देश में समाज के कार्यप्रणाली को सुचारू संचालन के लिए, आध्यात्म, कला, स्थापत्य, राजनिती आदि की जानकारी लिखी गई होगी तो वही भी संस्कृत में थी। आज भी अगर विश्व में किसी भी क्षेत्र के प्रारंभ की जानकारी प्राप्त करनी हो तो संस्कृत भाषा के ग्रंथों में ही प्राप्त होती है। संस्कृत ज्ञान ने सदैव भारत का मागदर्शन किया और अपनी शक्ति व क्षमता को पहचानकर हमें देश को विकसित राष्ट्र बनाना है। इस सम्मेलन का उद्देश्य संस्कृत के विद्वानों द्वारा विकसित भारत के मिशन में भूमिका और मागदर्शन प्राप्त करना है।
इस अवसर पर विभिन्न सत्रो के अंर्तगत दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो ओमनाथ बिमली, जेएनयू के स्कूल ऑफ संस्कृत एण्ड इण्डिक स्टडीज के अधिष्ठाता – विद्यार्थी कल्याण, प्रो सुधीर आर्य, नोएडा के आर्य गुरूकुल के आचार्य श्री जयेन्द्र, बेतालघाट के राजकीय डिग्री कॉलेज के प्राचार्य प्रो विनय कुमार विद्यालंकार आदि ने अपने विचार रखे।