मोम्सप्रेसो और मेडेला के नवीनतम सर्वेक्षण के अनुसार 70% भारतीय माताओं को स्तनपान एक चुनौतीपूर्ण अनुभव लगता है

दिल्ली:EROS TIMES: भारतीय माताओं की स्तनपान चुनौतियों पर सर्वेक्षण भारतीय माताओं की उन समस्याओं को समझना चाहता है जो उनके सामने आती हैं, जिसमें चिकित्सा समस्याएं और उनके कार्यस्थलों और सार्वजनिक रूप से स्तनपान सुविधाओं की कमी भी शामिल हैं।

नई दिल्ली, 2 अगस्त, 2018: महिलाओं के लिए भारत के सबसे बड़े यूज़र जेनेरेटेड कंटेंट प्लेटफॉर्म मॉम्सप्रेसो ने 510 भारतीय माताओं के बीच एक सघन सर्वेक्षण किया, जिसमें स्तनपान कराने के दौरान उनके सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में उनसे बात की गयी, उनसे सलाह ली गयी। भारतीय माताओं के लिए स्तनपान चुनौतियां” नाम से शीर्षक वाले अध्ययन को ‘स्तनपान सप्ताह’ के दौरान किया गया था, जिसे 1-7 अगस्त, 2018 से दुनिया भर में मनाया गया है।
इस अध्ययन को मेडेला के सहयोग के आयोजित किया गया था जो स्तनपान के क्षेत्र में विशेषज्ञ हैं और और जिनके पास माताओं और शिशुओं के लिए हर तरह के उत्पाद हैं (स्तन पंप से स्तन देखभाल और भोजन सोल्यूशन तक) इस बात पर प्रकाश डाला गया कि स्तनपान कराने वाली मां कैसे अपने घर और कार्यस्थल जैसे तात्कालिक माहौल पर चुनौतियों का सामना कर रही हैं।
सर्वेक्षण का उद्देश्य है कि इन चुनौतियों के बारे में मुख्यधारा में बातचीत की जाए और इनके हल खोजे जाएं।

सर्वे निष्कर्षों के अनुसार, 70% से अधिक भारतीय माताओं को लगता है कि स्तनपान एक चुनौतीपूर्ण अनुभव है। दिलचस्प बात यह है कि, 78% मांओं ने अपने बच्चों को एक वर्ष या उससे अधिक समय तक स्तनपान कराया है।
निरंतर स्तनपान कराने के लिए मुख्य उद्देश्यों में इसकी डिमांडिंग प्रवृत्ति के बावजूद कुछ थे, बच्चों के लिए स्तनपान के कारण स्वास्थ्य लाभ (98.6%), माता और शिशु के बीच नज़दीकी संबंध (73.4%), स्तनपान कराने वाली मां के स्वास्थ्य लाभ (57.5%) और स्तनपान के कारण वजन कम होना (39 .7%)

इसके अलावा, अध्ययन ने भारतीय माताओं की की स्तनपान की अवधि में सबसे बड़ी बाधाओं को प्रकट करने की मांग की। प्रमुख चुनौतियों को चिकित्सा समस्याओं, व्यवहारिक संक्रमण, कार्यस्थल चुनौतियों, यात्रा करते समय या सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान, और घर पर समर्थन आदि श्रेणियों में विभाजित किया गया था।
भारतीय माताओं के सामने आने वाली मुख्य छह चुनौतियों के बारे में इस सर्वे में बात की गयी थी जैसे , शुरुआती दिनों में समस्याएं जैसे चटके निप्पल, दूध न आने की समस्या, फूले स्तन (34.7%), बीच रात में जागने से थकावट, बहुत ज्यादा फीडिंग सेशन\ और लंबे फीडिंग सेशन (31.8%), बच्चे का काटना (26.61%), दूध आपूर्ति की समस्या (22.7%), सार्वजनिक स्थानों पर स्तनपान (17.81%) और आंशिक अवसाद (17.42%) जैसी समस्याएं।

38% माताओं ने आगे बताया कि बच्चे के जन्म के शुरुआती दिन उनके स्तनपान के सफ़र का सबसे चुनौतीपूर्ण समय था। अंत में, सर्वेक्षण ने प्रमाणित किया कि परिवार से समर्थन सफल स्तनपान यात्रा में सबसे ज्यादा जरूरी है। सौभाग्य से, 64% माताओं को यह आवश्यक पारिवारिक समर्थन पर्याप्त रूप से हासिल हुआ इसके अतिरिक्त, 37% माताओं ने आगे बताया कि उन्हें अपने जीवनसाथी से समर्थन हासिल हुआ, 24% माताओं स्तनपान के लिए इंटरनेट की मदद ली और 19.9% ने चिकित्सा सलाह मांगी। अपने परिवारों और जीवनसाथी के पर्याप्त साथ के बावजूद, 30% माताओं के लिए स्तनपान के समय परिवार की मांग को पूरा करना और काम के बीच संतुलन स्थापित करना एक चुनौती ही रही।

इस अध्ययन पर बोलते हुए, मोम्सप्रेसो के को-फाउंडर और सीओओ प्रशांत सिन्हा ने कहा, “मॉम्सप्रेसो ने हमेशा माताओं के लिए उनकी चुनौतियों पर बात करनेऔर उन पर समर्थन मांगने के लिए एक सुरक्षित स्थान बनाने का प्रयास किया है। जब कोई बच्चा पैदा होता है, पूरा ध्यान माँ से हटकर एकदम से बच्चे पर आ जाता है। इस स्तनपान सप्ताह, हम मानते हैं कि यह समझने का समय है कि नई माताओं को भी देखभाल और ध्यान की आवश्यकता है। युवा माताओं द्वारा सामना किए जाने वाले आम मुद्दों को पहचानना और बातचीत करना बहुत आवश्यक है, जिससे उनके लिए स्तनपान का उनका सफ़र बहुत जरूरी हो सकता है। सर्वेक्षण में भाग लेने वाली माताओं ने हमें नई मां के रूप में अपने सफ़र में आश्चर्यजनक और जबरदस्त सलाहें दी। इस सर्वेक्षण के माध्यम से हमारा लक्ष्य था इन माओं तक अधिकतर पहुंचना जिससे हम उन्हें यह समझा सकें कि अपनी यात्रा में अकेले नहीं हैं और साथ ही वे उन समस्याओं को सामने लाएं, जो उनके सामने आ रही हैं।
इसके अलावा, हम मानते हैं कि अध्ययन के नतीजे भारतीय माताओं के लिए स्तनपान के लिए उनके जीवनसाथी, परिवारों और कार्यस्थानों पर समर्थन में वृद्धि करेंगे।

शोध पर टिप्पणी करते हुए, मेडला के एमडी एमिली मौलार्ड ने कहा, “स्तनपान को लंबे समय से भारत में सबसे अधिक” प्राकृतिक चीज माना जाता रहा है, जैसा आंकड़े बताते हैं कि भारत में दो तिहाई मां कम से कम दो साल तक स्तनपान कराती हैं।
हालांकि, यह महान आंकड़ा इस तथ्य को छिपा ले जाता है कि केवल स्तनपान कराने की दर वास्तव में काफी कम होती है और अक्सर समाज (स्वास्थ्य पेशेवर, परिवार इत्यादि) एक ऐसी मां को पूरी तरह से विफल साबित करता है जिसके सामने स्तनपान को लेकर कई चुनौतियां आती हैं।
इस तरह के सर्वेक्षण से पता चलता है कि स्तनपान कराने का टैबू धीरे-धीरे खत्म हो रहा है।
और अगर हम उन बाधाओं को समझ पाएंगे तो उनका हल निकालने में सरलता रहेगी और यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि हर मां जो अपने बच्चे को अपना दूध देना चाहती है, वह वाकई में ऐसा कर सकती है।
यहां तक कि अगर बच्चा समय से पहले पैदा हुआ है और उससे दूर रखा गया है। यहां तक कि अगर उसके निप्पल चटक गए हैं या बड़े हो गए हैं. यहाँ तक कि अगर उसे वापस ऑफिस जाना है, हर चीज़ का एक हल है।

सर्वेक्षण ने सफलतापूर्वक यह बताया कि स्तनपान के लिए समर्पित सुपर-मॉम ने अपने बच्चों को हर दिन आने आने वाली कई समस्याओं के बावजूद स्तनपान कराया है।वास्तव में, इस पर भी यह सर्वे प्रकाश डालता है कि स्तनपान के मातृत्व का प्राकृतिक हिस्सा होने के बावजूद, स्तनपान प्राकृतिक रूप से माताओं के लिए नहीं आता है।

यह सर्वेक्षण यह बताने के लिए महत्वपूर्ण था कि बाहरी कारक स्तनपान कराने वाली माताओं पर गहरा असर डाल सकते हैं और उन्हें एक सकारात्मक, सहायक माहौल प्रदान करके उन्हें एक ऐसी सहायता दी जा सकती है, जिससे वे अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ समझौता किए बगैर अपने बच्चों को उचित पोषण प्रदान कर सकें।

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